पलाश के पुष्प ने
अपने रंग से
विपिन के ओर छोर पर
आग लिख दी है
फाग जब गाये जाएंगे
होली के उत्तेजक गीतों में
सुमन ये टेसू के
अपना मादक रंग घोल देंगे
भांग पीये भंगेड़ी सा
ये मौसम
कहीं इन दहकते पुष्पों में
गंध न घोल दे
इसी चिंता में वृक्ष ने
अपनी भुजाएं फैला दी है
इस रंग पंचमी को
प्रिया के होंठों से सुर्ख इस सुमन को
ढ़लते हुए सूरज की लाली सा
कोई नाम तो दे दो।
टेसू तो विचित्र सा प्रतीत होता है
है न!