खूब लड़ी वीरांगना

"खूब लड़ी वीरांगना; वो तो दिल्ली वाली रानी है..."

"अरे!! मेरी झाँसी की रानी तुमने तो कमाल कर दिया." टी. वी. पर एक और मैसेज फ़्लैश होने लगा. टी. वी. एंकर वीरांगना ने स्वयं मैसेज को पढ़ा और कहा - "ऐसे नहीं नानू; अपने अंदाज़ में कहो न..."

"नाना के संग वो पढ़ती है;वो नाना के संग खेली है... वीरांगना नाम है उसका;नानू की नातिन अकेली है... शब्दों के बाण और कलम की धार ही उसकी सहेली है... खूब लड़ी वीरांगना;वो तो दिल्ली की रानी है..."

वीडियो कॉल के ज़रिये, स्टूडियो से लाइव नानू की कविता सुन वीरांगना और नानू सहित सभी आँखें सजल उठी.

"अरे! अरे! आप सब ये मत सोचिये ये कविता गलत है. ये कविता मेरे नानू ने बनाई है, जो बचपन में घोड़ा-घोड़ा खेलते हुए मुझे सुनाते थे. जी... मेरे नानू, मुझे झाँसी की रानी से कम नहीं समझते थे, इसलिए बचपन से ही मुझे अन्याय के खिलाफ़ लड़ना, सही-गलत में फर्क करना सिखलाया और आज आपके सामने प्रसिद्ध समाचार-पत्र की सम्पादिका और मशहूर न्यूज़-चैनल की एंकर वीरांगना खड़ी है." वीरांगना ने बहुत गर्व से कहा.

"तो पेश है आज का स्ट्रिंग-ऑपरेशन : ऑपरेशन अंगों की काला बाज़ारी..." कुछ फोटो और वीडियो के ज़रिये वीरांगना ने स्ट्रिंग-ऑपरेशन का सजीव चित्रण प्रस्तुत किया.

"हुआ यूँ लगभग दो दिन पहले मैं अपने नानू के साथ घर में अकेली थी. माँ और नानी बाज़ार जा रहे थे, तो माँ ने भी मुझे चलने को कहा. एक बात बता दूँ मैं जितनी चपल और वाचाल; मेरी माँ उतनी ही खामोश... बोलती ज़्यादा नहीं थी, पर अपने कलम की नौक से सबकी बोलती बंद देती थी आख़िर लेखिका जो ठहरी, वो भी हिन्दी साहित्य की. हाँ तो मैं कहाँ थी... बाज़ार में... ऑफ़ हो!! मेरा मतलब है माँ; बाज़ार चलने को कह रही थी और मैंने मना कर दिया. एक तो नानी और माँ बाज़ार में बहुत दुकाने झाँकते और दूसरा किसी न किसी बात पर मेरी दुकान वालों से या बाज़ार में मुक्का-लात हो जाती... जी... मुझे, ऐसे-वैसे मत समझिये. मुझसे मुलाक़ात; कभी-कभी मुक्का-लात में बदल जाती है. लेकिन मेरे नानू को मुझ पर फ़क्र है वो मुझे कभी मर्दानी तो कभी वीरांगना पुकारते, इसलिए तो उन्होंने मेरा नाम वीरांगना रखा. नानी बेचारी को मेरे नाम से चिढ़ थी. "ये क्या मर्दानी... वीरांगना... नाम रखा है. माना झाँसी की रानी है, तो लक्ष्मीबाई ही नाम रख देते. अरे भई!! घर में लक्ष्मी ने जन्म लिया तो कुछ अच्छा सा नाम रख देते." माँ नानी की बात को टालने के लिए बोली - "मम्मी; जैसे चड्डा-चड्डी, शर्मा-शर्माइन; वैसे ही मर्दाना-मर्दानी और वीर-वीरांगना..." लेकिन अपने ही शब्दों का अर्थ-अनर्थ होते देख ख़ुद ही शरमा कर खिसक गई.

"अब घर में रह गए नानू और मैं... लेकिन अचानक मुझे लगा नानू की तबियत ख़राब हो गई है. उनका चेहरा पसीने-पसीने हो गया. वो बार-बार अपने सीने को मलने लगे और ऐसा लगा उन्हें चककर आ रहा है इसलिए..."

वीरांगना की बात पूरी करते हुए नानू बीच में बोले - "और मेरी झाँसी यानि की दिल्ली की रानी मुझे अपने पीछे बांध; अपनी फटफट यानि की बाईक पर बिठा हवा से बातें करते हुए अस्पताल ले गई. बिलकुल झाँसी की रानी की तरह जो अपने बेटे को कमर से बांध, घोड़े पर सवार युद्ध-भूमि पर पहुँच जाती है." नानू के चेहरा गर्व-से चमक उठा.

"हाँ... वो छोड़िये!! अस्पताल में दाखिल कराने के बाद माँ और नानी को भी फोन करके बुला लिया. तभी मैं कुछ कागज़ों पर साइन करने लगी तो अचानक एक औरत रोती हुई मेरे पास आई. "बेटी; तो ये पेपर साइन मत करो और जितनी जल्दी हो यहाँ से निकल जाओ. ये अस्पताल नहीं; अंगों की तस्करी का बाज़ार है जिसने झूठ बोलकर मेरे पति की किडनी बेच दी और भी न जाने कितने लोगों की जान..." - कहते-कहते वो औरत रोने लगी. मुझे भी दाल में कुछ काला लगा क्योंकि डॉक्टर ने भी दो मिनट चेक करने के बाद तुरंत ऑपरेशन के लिए बोला और पेपर साइन करने को दिए. मैंने तुरंत अपने सहयोगियों की सहायता से अस्पताल का कच्चा-चिठा निकलवा डाला. पिछले कुछ सालों से अस्पताल के खिलाफ़ काफ़ी शिकायत आ रही थी, पर सुलझने से पहले ही केस ख़त्म हो जाता था. अब जर्नलिस्ट होने के नाते खुराफ़ाती दिमाग़ चलने लगा. मैंने तुरंत नानू को बताया और वहां से निकलने को कहा ताकि दूसरे अस्पताल में उनका सही से ऑपरेशन हो सके."

"लेकिन नानू ने बताया की उन्हें कोई दिल का दौरा नहीं पड़ा. वो तो सुबह से कुछ खाया नहीं था, इसलिए एसिडिटी के कारण सीने में जलन होने लगी और गर्मी से पसीना और चक्कर आने लगा. लेकिन तू किसी की सुनती कहाँ है? हवा के घोड़े पर मुझे सवार कर, यहाँ ले आई. ख़ैर!! जो होता है अच्छे के लिए होता है. अब आये हैं तो इनका पर्दाफाश करना होगा." नानू, चुपचाप बेहोशी का नाटक कर लेटे रहे और मैंने चुपके से डॉक्टर की बात रिकॉर्ड कर ली... "अरे!! सीने में जलन है कुछ नहीं; ऑपरेशन के नाम पर..." और बेतुकी हंसी. लेकिन इससे कुछ ख़ास साबित नहीं होगा इसलिए नानी और माँ को भी प्लान में शामिल किया. आँखों पर चश्मा, मुंह पर मास्क और धूप के कारण दुपट्टा लपेटने से वो मुझे पहचान नहीं पा रहे थे, इसलिए मैंने भी नर्स का रूप-धारण कर लिया. इधर नानू की तरह माँ और नानी ने भी अपनी एक्टिंग का जलवा दिखाया. माँ ने पेट दर्द का बहाना बनाया, तो नानी ने मगरमच्छ की तरह आंसू बहाना शुरू कर दिया. "डॉक्टर साहब!! अब आप ही हमारे भगवान है. मेरा सुहाग और मेरी गोद, आपके हवाले है. दोनों का ऑपरेशन जल्दी कर दो."

"अब अंधा क्या मांगे, दो बातें..." आज तो दूसरी किडनी का भी बंदोबस्त हो गया. लेकिन डॉक्टर के गलत मुहावरें ने मेरी हिन्दी-प्रेमी माँ को हिला दिया और मैंने आँखों-आँखों में उन्हें कण्ट्रोल करने को कहा.

नानी, नानू के पास रुकी और माँ को ऑपरेशन-थिएटर ले जाया गया. आँखों मूंदे माँ मन ही मन डरी जा रही थी. अब ये तो वक्त ही बताता की आज किसका ऑपरेशन होगा : माँ का या डॉक्टर का. ऑपरेशन-थिएटर में दो डॉक्टर और मुझे मिलाकर एक नर्स और थी. मास्क होने की वज़ह से उन्होंने मुझे पहचाना नहीं. डॉक्टर ने माँ को बेहोश करने के लिए इंजेक्शन लगाने को दिया. जो मैंने झूठ-मूठ का लगा दिया. ख़ैर कुछ देर बाद किसी का फ़ोन आता है, दोनों डॉक्टर हँसते हुए बात करते हैं. "भई!! आज तो दो मुर्गे फंसे है. अब जल्दी से रोकड़ा भेज ताकि मैंने दो-नौ ग्यारह हो जाऊँ और अब बाल्टी में सर दिया है तो पानी से क्या डरना... और कब-कहाँ मिलना है?" जिसकी पूरी रिकॉर्डिंग मैंने अपने ख़ुफ़िया कैमरे से कर ली. जिसका लाईव-टेलीकास्ट, न्यूज़-चेंनल पर आप सभी ने साक्षात् रूप में देखा. माँ बेचारी को अपने चीड़-फाड़ से ज़्यादा, मुहावरों के चीड़-फाड़ का डर था, जो डॉक्टर बिना समझे-बोले जा रहा था. "है भगवान!! अगर नानू ने अपने लिए मुर्गा शब्द सुन लिया तो इसकी ख़ैर नहीं. भई शुद्ध शाकाहारी है." अचानक, ऑपरेशन-थिएटर का दरवाज़ा ज़ोरों से खटका. मैं समझ गई की न्यूज़ के लाईव-टेलीकास्ट से अस्पताल को हमारी प्लानिंग के बारे में पता चल गया है. आनन-फानन में माँ उठी और सबसे पहले तो सीनियर डॉक्टर को दबोचा और गुस्से में कड़वी डांट पिलाई - "तूने मेरे मुहावरों का सत्यानाश कर दिया. अब देख तेरे पैरों तले कैसे ज़मीन खिसकती है और सिर मुंडाते ही कैसे ओले पड़ेंगे" और उसे ऐसे-ऐसे हिन्दी मुहावरें सुनाये की बिचारा बिना इंजेक्शन के ही बेहोश हो गया. उधर जूनियर डॉक्टर और नर्स भी, घबराये से माँ और मुझसे नज़र बचा भागने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन वो भूल गए की उनका पाला किससे पड़ा है. अरे!! हम न्यूज़ वालों के आगे ही नहीं, पीछे भी आँखें होती है. मैंने भी आव देखा न ताव... डरते-डरते माँ से पूछा - "माँ! ये मुहावरा ठीक है न.." पिछवाड़े पर ऐसी मुक्का-लात बरसाई की सीधा उनकी मुलाक़ात पुलिस वालों से हो गई. दूसरी ओर हर वक़्त नानू के साथ नौक-झोंक करने वाली नानी ने नानू के डॉक्टर के बाजू में बेहोशी का इंजेक्शन ठोक डाला. ये तो लाइव-टेलीकास्ट और मेरे कलीग की मदद से समय से पहले ही अस्पताल में पुलिस पहुँच गई और स्ट्रिंग-ऑपरेशन कामयाब हो गया नहीं तो देने के लेने, मेरा मतलब है लेने के देने पड़ जाते. पुलिस की कार्यवाही से जल्द ही अंगों की तस्करी करने वाले गिरोह का भी पर्दाफाश हो जायेगा."

टी. वी. स्क्रीन के नीचे सभी की बधाइयों और शुभकामनाओं का सन्देश आने लगा और दूसरी ओर नानू फिर से कविता गाने लगे "खूब लड़ी वीरांगना; वो तो दिल्ली वाली रानी है..." वीरांगना ने सजल आँखों से अपने परिवार और सभी चाहने वालों का दिल-से शुक्रिया अदा किया.

दोस्तों!! चाहे ये एक काल्पनिक रचना है. लेकिन आज के समय में लड़कियाँ भी झाँसी की रानी से कम नहीं. आज की लड़की; मर्दानी और वीरांगना कहलाती है जो पूर्ण रूप से सत्य है. इस संदर्भ में आपके क्या विचार है? कृपया अपनी प्रतिक्रिया अवश्य साँझा करें.


तारीख: 05.02.2024                                    मंजरी शर्मा









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