कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम हैं कहना

"लोगों का तो काम ही होता हैं बातें बनाना... मनुष्य एक सामजिक प्राणी है. हमारी सरंचना भी इसी समाज में हुई है. हम सभी इसी समाज का हिस्सा है, और इस समाज में रहने वाले लोगों की हमें ज़्यादा परवाह होती है. हमें हमेशा एक डर लगा रहता है की "लोग" क्या कहेंगे.... लेकिन हम भूल जाते हैं की हमारे दुखों में, मुसीबतों में और हमारे संघर्षो में ये "लोग" कभी साथ नहीं होते." - टीवी पर "मन की उलझन" कार्यक्रम चल रहा था. जानी-मानी मनोचिकित्सक; अनीता जी फ़ोन कॉल के माध्यम से लोगों की मन की उलझनों को सुनती और साथ ही उनका समाधान भी बताती थी.  रमाकांत जी; अधिकतर अनीता जी का कार्यक्रम देखते और पसंद करते थे. "कितनी आसानी से लोगों के मन की उलझनों को आसानी से दूर कर देती हैं अनीता जी. सच में इनकी बातें सुनकर, मन फिर-से ऊर्जावान हो जाता हैं जैसे किसी ने दिल का बोझ हल्का कर दिया हो."

"अरे! बहु, यह क्या पहना है? लोग क्या कहेंगे?" - श्रीमती शर्मा ने अपनी बहु को गुस्सा होते हुए कहा.

"रिंकू, दसवीं में इतने कम प्रतिशत... लोग क्या कहेंगे? अफसर का बेटा पढ़ाई में फिस्सडी..."

"अरे! डॉक्टर की औलाद हो कर, तुम शेफ का काम करोगे..."

"रीना, तुम्हारी सभी सहेलियों की शादी हो गई. तुम कब करोगी? पड़ोस वाली आंटी ने, आँखे मटकाते हुए कहा..."

"अरे, रमा जी तुम्हारी बहु की शादी को पांच साल हो गए, बच्चे की खुशखबरी कब दे रही है वो..."

"इस तरह के और भी जुमले; हम रोज़ अपने आस-पड़ोस, रिश्तेदारों और अपने सहयोगियों से सुनते आते है. ये वे "लोग"... हाँ; जिन्हे अपने से ज़्यादा, दूसरों की ज़िंदगी में क्या हो रहा है, ज़्यादा चिंता होती है या लोग हमारे बारे में क्या सोचेंगे, इस बात से ज़्यादा परेशान होते है." - अनीता जी लगभग सभी उदाहरणों का नाटय रूपांतरण कर; हास्य-विनोद जैसा माहौल बना दिया.

अपने हाव-भाव से अनीता जी आगे बोली - "इस तरह की बातें; अनजाने में ही हमारे डर का हिस्सा बन जाती है. हम हर बात को अपनी इज़्ज़त, अपने खानदान और स्टेटस से जोड़ लेते है और सही निर्णय लने की हिम्मत नहीं कर पाते और अवसाद या डिप्रेशन में चले जाए है, जिसका दुखद परिणाम आत्महत्या भी होता है. इसी समाज में बदनामी के डर से कई लड़कियां; असफल रिश्ते निभाती है और शोषण का शिकार बनती है. हम पर "लोगों के कहने" का इतना प्रेशर होता है की हम अपने फैसले खुद-ब-खुद उन्ही लोगों के अनुसार लेने लगते है."

"इस तरह की घटनाएं आम लोगों के मन में और भी दबाव व डर को बढ़ाती हैं, जिससे उन्हें भी यही लगता है कि हर छोटे-बड़े निर्णयों में समाज की सोच का भी ख़्याल रखना ज़रूरी है. हमें अपनी सोच, स्वयं बदलनी होगी. हमें निर्णय लेने का अधिकार है. अब लोगों की गलत बातों को बर्दाश नहीं करेंगे, उन्हें जवाब देने से हिचकिचाएंगे नहीं. - अनीता जी की के कहने का अंदाज़ रमाकांत जी बखूबी समझ रहे थे.

ये समाज के "लोग" हमारी मुश्किलों में कभी साथ नहीं देंगे. आप चाहे सही करे या गलत, ये "लोग" हर बात पर कमेंट करेंगे. इसलिए आपको जो सही लगता है आप करें, अपने निर्णय के आप स्वयं ज़िम्मेद्दार होंगे. लोग क्या कहेंगे, यह सोचकर हम अपनी या अपने बच्चों की ख़ुशियां, उनके सपनों को छोड़ नहीं सकते, वरना यह डर हमारे बाद हमारे बच्चों के दिलों में भी घर कर जाएगा और यह सिलसिला चलता ही रहेगा. हमें क्या करना है, कैसे करना है यह हमें ही तय करना है. हां, दूसरों की सहायता ज़रूर ली जा सकती है. अगर कहीं कोई कंफ्यूज़न है तो… लेकिन आखिर में रास्ता हमें ही निकालना है. - अनीता जी के चेहरे के साथ-साथ रमाकांत जी का चेहरा भी मुस्कुरा उठा और सभी को शुभकामनाएं देते हुए अनीता जी ने कार्यक्रम को समाप्त किया.

असल में रमाकांत जी; अनीता जी को दो साल से जानते थे. इन दो सालों में पत्नी के जाने के पश्चात एकमात्र अनीता जी ही थी, जिन पर विश्वास कर दोस्ती का हाथ बढ़ाया. अनीता जी भी रमाकांत जी को पसंद  करती थी और इस रिश्ते को दोस्ती से आगे बढ़ाना चाहती थी. लेकिन रमाकांत जी "उम्र और लोग क्या कहेंगे" की उलझन में फंसे थे; जिसका एक मुख्य कारण यह था की अनीता जी; पचपन वर्षीय रमाकांत जी से उम्र में लगभग दस वर्ष छोटी थी. लेकिन आज कार्यक्रम के माध्यम से अनीता जी ने रमाकांत जी की मन की उलझन ही नहीं; अपितु बातों-बातों में अपनी मन की बात भी कह दी थी.  अनीता जी इसी ज़िंदादिली पर तो रमाकांत जी कायल थे.

"बाऊजी; आपने अनीता जी को अपना जीवनसाथी चुनकर बहुत अच्छा किया. प्यार की कोई उम्र नहीं होती और इंसान को वही काम करना चाहिए जिसमें उसे स्वयं ख़ुशी मिलती हो. 'चार लोग क्या कहेंगे; पूरी उम्र हम यही सोचते रहते हैं.' आपके इस फैसले में कोई साथ दे न दे; पर आपके बहु-बेटे हमेशा आपके साथ हैं और आपके फैसले का हम आदर करते हैं. " - अपने बहु-बेटे की बात सुनकर रमाकांत जी के दिल का बोझ हल्का हो गया.

उन्होने तुरंत अनीता जी को फ़ोन कर विवाह का प्रस्ताव रखा; जिसे अनीता जी ने सहज ख़ुशी-ख़ुशी स्वीकार कर लिया. "लेकिन मैं ये विवाह खूब धूमधाम से करूंगा और अपनी शादी में नाचूंगा भी..." -  "लेकिन रमाकांत जी; लोग क्या कहेंगे" -  उधर से अनीता जी ने व्यंग्य किया. "अरे!! कुछ तो लोग कहेंगे; लोगों का काम हैं कहना..." गाते-गाते दोनों ज़ोरों से खिलखिला उठे.


तारीख: 06.02.2024                                    मंजरी शर्मा









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