लालच की रोटी

ये रंगे सियार की वो मंशा है
जो शमशान की सबसे ऊँची मचान पे बैठ
देखना चाहती है जलते हुए सबको
खा जाना चाहती  है
एक-एक की बोटी-बोटी

यह सियार बहुत चालाक है
लालच की एक रोटी फेंक
सुला देना चाहता है संपूर्ण मानवता को
असंतुलन ही उसका हथियार है
वो नहीं चाहता कोई जागृत हो
अपने वाजिब अधिकारों को पाने के लिए ।
वे आपस में ही काटते रहें , मारते रहें
अपने ही भाइयों को-- साथियों को

वह चाहता है
कभी शिक्षित न हो समाज
न कभी जातिवाद ख़त्म हो
और न वीभत्स साम्प्रदायिकता
हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख- इसाई
सब गला काटतें रहें एक दूसरे कां
और चरम नृशंसता के साथ
शर्मशार करते रहें आदमी की
आदमीयत को

वह चाहता है
अपंग अपंग रहें
भूखे भूखे रहें
अन्याय का सामना करने के लिए
कहीं कोई ताकतवर न बन जाय ।

यह ऐसी चालबाजी है
जो उन्हें न घर का छोड़ेगी न घाट का ।

सावधान हो जाओ साथियो
सावधान हो जाओ ।


तारीख: 06.02.2024                                    नीतू झा









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