मां-बेटी का रिश्ता


मां और बच्चे का रिश्ता दुनिया के सभी रिश्तों से पवित्र रिश्ता माना जाता है।एक औरत जब मां बनती है तब वह संपूर्ण हो जाती है। जिस दिन, एक नन्ही परी उसकी कोख से जन्म लेती है तो एक औरत खुद पे गर्व महसूस करती है क्योंकि एक बेटी के रूप में उसने फिर से खुद जन्म लिया। एक बेटी के रूप में वो अपना बचपन फिर से जीती है।

मां और बेटी का रिश्ता दुनिया के सभी रिश्तों से अनमोल रिश्ता है। जब नन्ही परी चलना शुरू करती है, तो उसकी मासूम सी हंसी और उसके खेलने के तरीकों में मां अपना बचपन ढूंढती है।

मां- बेटी का रिश्ता दुनिया का सबसे मजबूत रिश्ता होता है। मां अपनी बेटी के बिना कहे ही उसकी हर प्रॉब्लम को समझ जाती है।

इस प्यारे से रिश्ते में कितने ही मधुर अहसास छिपे होते है। मां और बेटी अच्छी दोस्त भी होती हैं, दोनों अपनी हर छोटी से छोटी बात एक दूसरे से शेयर करती हैं। दोनों में से किसी को भी कोई तकलीफ होती है तो वो दोनों बिना बोले समझ जाती है.

बेटी की पहली शिक्षक, मां ही होती है। बेटी को अच्छे संसकार मां, से ही मिलते हैं। मां, अपनी बेटी को जिंदगी में आने वाली सभी मुश्किलों से निपटना भी सिखाती है।

मां, बेटी की ज़िंदगी संवारने वाली नींव होती है और उसकी रोल मॉडल भी. वह उसका क़दम-क़दम पर मार्गदर्शन करती है और उस पर आवश्यकतानुसार बंधन भी लगाती है.

यही एकमात्र ऐसा रिश्ता है, जहां तमाम मतभेदों के बावजूद दोनों एक-दूसरे की केयर करती हैं. वे एक-दूसरे का दर्द समझती हैं.

एक बेटी भी, माँ का प्रतिरूप लेकर, अपनी माँ को भावनात्मक संबल देती है. वह अपनी माँ को सपोर्ट करती है. माँ की मन की बात जान कर उसकी इच्छाओं की पूर्ति करती है. एक बेटी माँ को "माँ होने के एहसास" से ज़्यादा उसकी "खुद से खुद की पहचान" कराती है.

सही अर्थों में, माँ-बेटी एक दूसरे की 'परछाई', एक दूसरे का 'प्रतिरूप' या कहे एक दूसरे का 'प्रतिबिम्ब' है.


तारीख: 13.02.2024                                    मंजरी शर्मा









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