तोड़ कर बंधन कुछ समय के लिए उन्मुक्त हो उड़ना चाहती हूँ दो पल मुझे भी दो मेरी ज़िन्दगी से मैं फिर अल्हड़ बन खिलना चाहती हूँ परंपरा सेवा ज़िम्मेदारी में बीत गया जीवन आधा दो मुझे वो स्वछंद आइना मैं खुद से फिर मिलना चाहती हूँ
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