हम कुम्हार अपनी माटी के नित नित संवारे अपने को माटी जैसे नरम बने हम दंभ द्वेष से दूर रहे हम । माटी में रच बसकर हम माटी बन जायें माटी में ही बाग लगाया माटी से ही घर को बनाया। माटी का सब मोल समझो अंत में माटी में ही मिल जाना है।
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