हरा भरा ये मौसम
बारिश का
आँचल पकड़े है।
पावस में
हरियाली ने
अनुबंध लिखा।
कल कल बहते
झरने ने
छंद लिखा।।
आसमान मेह को
बाहुपाश में
जकड़े है।
है ऋतु को
आँधियाँ और
तूफान झिंझोड़े।
बुझ गए
अंगारों से
लू लपटों के कोड़े।।
बूढ़े-बूढ़े बरगद-आम
झंझानिल में
अकड़े हैं
पुल बहे,
बादल फट गया,
गाज गिरी।
उफनाती हुई
नदिया की है
लाज गिरी।।
सावनी ऋतु में
जब तब होते
अनायास के लफड़े हैं।