घर से निकलते वक़्त सामान से ज्यादा भारी होता है मन,
बढ़ते कदमों के साथ बदन से झड़ता है मोह, रेत की तरह
फिर पहुँच कर हवाईअड्डे होता है जब वज़न मातृत्व का
और रह जाता है जब पंद्रह में किलो एक कम,
तब लगता है, इसबार ठेकुआ छूट गया।
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