चलों बात करते है
यूँ तो बहोत है बताने को
वक्त शायद कम है
फुरसत कहा सुनाने को
उंगली चल रही है
बटन दब रही कहने को
अल्फाज तैर रहे है
वक्त नही समझने को
कोई तो लिख रहा है
कुछ तो शायद जताने को
पढ़ना मुश्किल है
वक्त न आंख टिकाने को
कलम चल रही है
दूर तक साथ ले जाने को
मगर साथ कौन है
कलम अकेली निभाने को