बोलती तस्वीर

देखो, देखो , क्या हरियाली है
हरे पत्ते, लाल फूल, घने जंगल ,
तभी आदमी मुझसे बोला,
अरे मुर्ख तुझको कहाँ यह सब दिखता है,
तो मैं इशारा कर देता हूँ,
इस तस्वीर मैं |

फिर से देखो, क्या रंग है,
इस दुनिया का,
सतरंगी सा चमक रहा है,
मनो हमको रिझा रहा है,
फिर से आदमी बोलता है,
तो मैंफिरइशारा कर देता हूँ,
इस तस्वीर में |

अरे फिर से देखो, क्या तेज़ है,
इन बच्चों में,
दुनिया से है कहना चाहते,
मनो सीख सिखाना चाहते,
कुछ तो कहना चाहते है,
ऐसा मैं सोच कर बोल रहा हूँ
वह आदमी फिर भी बोला
बस कर अपनी मूर्खता,
मैं बोलता हूँ,
यह मुझमे नहीं है,
इस तस्वीर में |

अब वह आदमी कहता है,
अगर खूबी है इस तस्वीर में,
तो लगवा दो इसे मेरे
कमरे में,
अब मैं बोल पड़ता हूँ,
पहले जनाब इस कोरे कागज़
पर तस्वीर तो बनाइये |
 


तारीख: 21.06.2017                                    गोविन्द राम डबराल




रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है