जिस राह पे बरसों से ख़ामोशी का पहरा था,
अचानक तुम मिले, जैसे कोई सपना गहरा था।
धड़क उठा दिल ऐसे, जैसे कोई भूली सी धुन,
पतझड़ की शाख़ पर खिल उठा कोई कोमल गुल।
नज़रें मिलीं, पर शब्द दूर कहीं खोए थे,
आँखों में वही बातें, जो होंठ न कह पाए थे।
एक लम्हे में बीते हुए सारे पल जी उठे,
ख़्वाब, उम्मीद, यादों के सारे मंज़र जाग उठे।
दुनिया चलती रही, पर मेरे लिए वक़्त थम गया,
उस भीड़ में बस तुम थे, बाक़ी सब धुंधला गया।
आँखों में आँसू नहीं थे, पर नमी तो थी,
दिल के अंदर इक हलचल, इक कमी तो थी।
जानता हूँ ये पल, सिर्फ़ लम्हा भर का है,
समंदर में उठी इक लहर, जो मिट जाने को है।
फिर भी चाहता हूँ, इसी लहर में डूब जाऊँ,
पुराने 'हम' को फिर से एक बार गले लगाऊँ।
शायद ये मुलाक़ात भी, बस ख़्याल ही तो है,
पर इस ख़्याल में भी सच का कमाल ही तो है।
तुम मिले, एक पल के लिए, या एक उम्र के लिए,
पर इसी एक पल में ज़िंदगी के सारे मायने छुपे।