कान्हा के अंग मयूर पांखङी, यम के संग में दंडध्वजा
है डमरु जैसे शिवेंद्र त्रिशूला, ऐसे मूझ संग कलम मेरा
ज्यूँ दुग्ध विराजत छाती में, ज्यूँ सिंधु में रत्नों का डेरा
है करमध्ये डेरा रेखा का, यूं मुझमें बसता कलम मेरा
वायू प्रस्तर से जनती रेणु, दे मधुकर जीवन पुष्पों को
मेघवृष्टि ज्यूँ श्री की जननी, यूं सृजता तारे कलम मेरा
रामचन्द्र ने कोदंड साधा, कृष्णा ने रखा संग सुदर्शन
गांडीव संग सोहे अर्जुन, मूझ पर सजता कलम मेरा
हो सिंह उपस्थित मृगदल कांपे, चन्द्रहास से मृगतृष्णा
ज्यूँ दीपक से रजनी कांपे, यूँ ज्योति रचता कलम मेरा
सखी सहेली नन्दन तनुजा, शुभ सम मंगल मनभावन
ज्यूँ गंगा हो पतित पावनी, यूँ मुझमें बहता कलम मेरा