मैं आपको अक्सर दिखूंगा
होटल,ठेला, फुटपाथ और रेल में
या किसी रईस के साथ में
7 वर्ष की उम्र से ही
मुझे काम करना पड़ता है ,
शौक नहीं है साहब
पेट भरने के लिए करना पड़ता है,
मैं भीख नहीं मांग सकता
न ही कोई मुझे पढ़ने देता है,
ऐसा नहीं मैं पढ़ नहीं सकता
मुझे पढ़ाई सोचने से पहले पेट सोचना पड़ता है,
मैं बाल मजदूर हूँ
मैं आवाज नहीं उठा सकता।
उम्र से बच्चा हूँ
कम उम्र में ही पक्का हूँ ,
दिखने में कच्चा हूँ
पर ईमान का सच्चा हूँ ,
मैंने नैतिकता का पाठ नहीं पढ़ा
कभी कभी भूख से मजबूर होता हूँ
पर मैंने कभी चोरी नहीं किया,
मैन स्कूल नहीं देखी
पर मालिक के बेटे की शान देखकर
स्कूल का महत्व समझ गया हूँ ,
मैं कहीं कोई प्रशिक्षण नहीं लेता
पर देख कर सब सीख लेता हूँ ,
मैंने कभी आंखमिचौली नहीं खेली
पर जीवन की आंखमिचौली रोज खेलता हूँ ,
कभी गाली सुनता,कभी थप्पड़ खाता
खुलकर रो भी नहीं पाता हूँ ,
मुझे हंसने -रोने से पहले भी सोचता पड़ता है
मैं बाल मजदूर हूँ
आवाज नहीं उठा सकता ,
मेरे देश में सबके लिए कानून है
हर दिन यहां होता आंदोलन है
कभी धर्म ,कभी न्याय ,कभी नौकरी
कभी विश्वविद्यालय ,महिला ,शोषण
हर क्षेत्र के लिए होता हड़ताल और हंगामा है ,
पर हमारे लिए विचार केवल गिने-चुने दिन होते हैं ,
वो नीली बत्ती वाले भी तो चाय मुझ ही से लेते हैं ,
मैंने कभी नहीं देखी मेरे लिए कोई आंदोलन
मुझे लगता है बीत जाएगा मुझ जैसों का ऐसा ही जीवन ,
संविधान में होगा हमारे लिए भी कुछ
पर हम उतना पढ़े कहाँ जो देख पाते अपने लिए कुछ ,
मैं आवाज नहीं उठा सकता परिवार के लिए
हर दिन इंतजाम करना पड़ता है ,
मैं बाल मजदूर हूँ
आवाज नहीं उठा सकता.....