गुलज़ार

देखा है मैंने एक शख्स
झक्क्, सफैद लिबास में
संजीदा , खोया-खोया सा
मानो हर पल शब्दों से
बातें करता रहता हो
और शब्द भी जैसे
उससे कानाफूसी करते ,
बच्चों की तरह ,
मचलकर उसकी उंगली थामे,
बिन सोचे-समझे चल पड़ते हों उसके साथ
जी भर खेलते हों फिर दोनों
कभी ऊँचे आसमान में ,कभी रेगिस्तान में ,
कभी समंदर की लहरों संग
अठखेलियां करते ,
कभी महकते फूलों से भरे बाग में ,
कभी बारिश में ,
कभी खिलखिलाती धूप में !
और यूंही खेलते-खेलते
रच देते हैं चुटकियों में कविताएं ,
और कर देते हैं हमारा भी जीवन
गुलज़ार दोनों !


तारीख: 17.02.2024                                    सुजाता









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