इस जन्मदिन पर क्या उपहार दूँ

होंठ की पंखुड़ी यू ही खिलती रहे
आंखों को रोशनी यू ही मिलती रहे

केश होकर घने और स्वर्णिम बने
जिसकी छाया में सो कर मेरा दिन बने
इन दो कर्णो को मेरी है शुभकामना
आपको दे सुनाई सुखद सूचना
हाथ दोनो उठे तो दुआएं मिले
हों निडर पग चले न बाधाएं मिले
कंठ कोयल के जैसे सुरीली रहे
हो सुखद वाणी शब्द भी रसीली रहे
मेरे वश में जो हो सारा संसार दुँ
इस जन्मदिन पर क्या उपहार दूँ

अपना जीवन समर्पित किया आप को
अपना तन मन समर्पित किया आपको
आपके साँचे में मैं तो ढलता रहा
तुमको करने प्रकाशित मैं जलता रहा
अपने हिस्से की खुशियां है अर्पण तुम्हें
मेरा प्रतिबिम्ब हो माना दर्पण तुम्हें
शूल चुभते मेरे पाँव चलता गया
आप हंसती रहो मैं भी हँसता गया
पीर उर में छिपाये मैं सोया नही
नींद प्रियतम की टूटे न रोया नही
ऐसी निश्छल प्रिया सौ जनम वार दूँ
इस जन्मदिन पर क्या उपहार दूँ


तारीख: 15.04.2024                                    महर्षि त्रिपाठी









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