सूखी धरती के फट जाने से फिर जैसे छम छम करता आया सावन
मैं तो खुश हूँ पर कभी हाँ कभी ना कहता है मन
खुश हूँ की मिल गया जीवनसाथी मेरा
पर बिछड़ गया मुझसे मेरे बाबुल का बसेरा
आँखों के आंसू रुकते नहीं बिछड़ जाने से
फिर भी नया घर मिलने पे मुस्कुराने को
कभी हाँ कभी ना कहता है मन
ना अपना ही घर है, ना बहन ना भाई
कैसे लागे दिल जहाँ ना थी कभी आई
यादों के पन्ने मिटते नहीं दूर जाने से
फिर भी नया तिनका जुटाने को
कभी हाँ कभी ना कहता है मन
इनका घर ही सब कुछ, ये है मेरे अपने
कैसे मैं कह दूँ मेरी चाहत मेरे सपने
दिल की धड़कन बढ़ जाती है पास भी जाने से
फिर भी मुस्कुराकर दिल बहलाने को
कभी हाँ कभी ना कहता है मन
मैं तो खुश हूँ पर कभी हाँ कभी ना कहता है मन