अब निकलेगी नारी
तमाम अपवादों को ध्वस्त कर
कटाक्षों को सहती हुई
दहलीज के पार
इसलिए नहीं कि उस पार
रतन जड़ित स्वर्णिम भविष्य होगा
सुंदर स्वच्छन्द अप्रतिम अम्बर होगा
उस पार जब निकलेगी वे
अग्नितपीश, आग का दरिया होगा
जिसमें कई-कई बार झुलसी जाएँगी
उनके अस्तित्व को ललकारा जाएँगा
तुफानो का भँवर, बवंडर होगा
जिसमें कई-कई बार विचलित होगी
पर अब वे रुकेगी नहीं
बस चलती जाएँगी
आगे,
और आगे,
बहुत आगे।
अब वे सवाल भी पूछेगी
और जबाब भी ढूंढेगी
पर अब वे रुकेगी नहीं
स्वयं को निखारेगी
स्वयं को तलाशेगी
स्वयं को पहचानेगी
पर अब फिर से
कैद नहीं होगी उड़ाने।