कुछ छूट गया कुछ छोड़ दिया
किस राह पर तूने मोड़ दिया ए-जिंदगी।
बहुत कर चुका सब्र
अब मेरे सब्र का इम्तिहान न ले ए-जिंदगी।।
राह जैसी भी थी मैं चलता गया
तेरे इशारों पर ढलता गया ए-जिंदगी।
अब कोई इशारा न कर
अब तो किनारे लगा ए-जिंदगी।।
कुछ अनकहे किस्से सुन
कुछ हमारे दर्द की भी दवा कर ए-जिंदगी।
बहुत जी चुके बेपनाही में
अब तो हमें फना कर ए-जिंदगी।।