कुछ बाकी है

ये दुनिया पग पग नापी है
धरा मेरी अभिलाषी है
मेघो की बात यहाँ क्या
नदियाँ मेरी प्यासी है

झोको से थी यारियां कब?
आँधिया मेरी साथी है
अंधेरो से मूह है फेरा
उजाले मेरे विश्वासी हैं

पत्थरो को क्यों मै पूजूँ?
यंहा दीवारों पर मेरे
सारी नक्काशी है।।
क्या अब भी कुछ बाकी है?
क्या अब भी कुछ बाकी है?

नाप ली ये दुनिया पग पग
जिसका कोई अंत नहीं
वो ब्रम्हांड अभी बाकी है।
मेघ तो कबके रूठे
नदियों ने आस है छोड़ी,
प्यास का खारा सच है जिसमे
वो सागर अभी बाकी है।

आंधियो ने है नाता तोडा
झोंको ने भी साथ है छोड़ा,
नभ के सिने से छलकता
वो तूफ़ान अभी बाकी है।

उजालो का सहर है देखा
दमकता हुआ दोपहर भी देखा,
शशि की चाह में सिसकता
अमवास अभी बाकी है।

पत्थरों का बस खंडहर ही देखा
इनसे पटा बंजर ही देखा,
जहाँ राम राम नक्काशी है
जहाँ राम राम नक्काशी है
वो सेतु अभी बाकी है।।
                


तारीख: 15.06.2017                                    अंकित मिश्रा




रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है


नीचे पढ़िए इस केटेगरी की और रचनायें