माँ..जब तू मुस्काई थी।।

मैं जब पहली बार था रोया,
तब तू मुस्काई थी,
असहाय से उस दर्द में भी तूने
शायद ख़ुशी की अनुभूति पाई थी।।
          मैं जब पहली बार था रोया, तब तू मुस्काई थी।।
तुझसे ये सारा संसार है,
तुझसे है रंग-ओ-आबशार है,
तुझसे बंधी है हर दिल की डोर,
तू ही तो जीने का आसार है।
        अब जब भी हंसा मैं, तब तू मुस्काई थी
परवरिश जो तूने की ,आँचल में छुपा कर
हर खुशियां दी मुझे, तूने अपने सुख भुला कर,
इतनी मोहब्बत नही कहीं देखी मैंने,
जो तूने किया है माँ, मेरी सारी गलतियां भुला कर।
जब भी मैंने की इतनी बदमाशियां,
        प्यार से समझाया, फिर तू मुस्काई थी।
      मैं जब पहली बार था रोया ,
      तब तू मुस्काई थी।।


तारीख: 15.04.2024                                    अनुराग मिश्रा अनिल









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है