बादलों के चट्टानों को तोड़
गुलाबी किरणों की डोर
पकड़ जब तुम्हारी स्मृतियाँ
हृदय के आंगन में उतरती है
मन की शाम ऊषा की स्वर्णिम
किरणों की सीढ़ियाँ चढ़ती हुई
आहिस्ता - आहिस्ता हर्ष के
भोर में बदलती है...
तारीख: 05.02.2024वंदना अग्रवाल निराली
नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है