बादलों के चट्टानों को तोड़ गुलाबी किरणों की डोर पकड़ जब तुम्हारी स्मृतियाँ हृदय के आंगन में उतरती है मन की शाम ऊषा की स्वर्णिम किरणों की सीढ़ियाँ चढ़ती हुई आहिस्ता - आहिस्ता हर्ष के भोर में बदलती है...
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