औरत को कोमल कहने वालो सुनलो मेरी बात,
आओ आज तुम्हे बतलाऊ औरत की औकात |
यदि औरत कोमल होती तो, प्रसव की पीड़ा कैसे सहती,
अंतरिक्ष तक न वो पहुंचती, घूँघट में ही सिमटी रहती,
इंदिरा सी बन कर न करती वो देश पे बरसो राज |
हाथों में तलवार थामकर अंग्रेजो से न वो लड़ती,
निज सतीत्व की रक्षा हेतु, पद्मावती सा जोहर न करती
पन्ना बन निज सूत का ही वो करती न बलिदान |
यदि होती अबला नारी तो, नरमुंडों का हार न पहनती,
और कभी वो दुर्गा बन कर दुष्टों का संहार न करती
कभी लक्ष्मी कभी दुर्गा रूप में उसे न पूजा जाता आज |
शब्दों में ही देखलो अंतर, नारी नर पर भारी है,
राधा- श्याम और सीता-राम में भी, औरत की पहली बारी है
नारी बिना न पूरी होती मर्दो की ये जात |
यदि नारी न होती जग में सृष्टि बंजर रह जाती,
सब कुछ सूना-सूना होता, हर देहरी मरघट कहलाती
एक औरत ही पूरा करती सृष्टि और समाज |
औरत को बस देह न समझो, वो तो एक चिंगारी है
इज्जत दो तो जान लुटा दे , वर्ना सिंघनी बन दहाड़ी है
सहनशीलता और क्षमा तो उसके है जेवरात |