सिलसिला सालों का कुछ यूं ही चलता रहता है
बीत जाता है एक तो एक नया रूख लेता है
दिल में समेटकर ढेरों अनुभव जिंदगी के
कुछ आशाओं और निराशाओं से उभरकर
कुछ उथल-पुथल और कुछ ठहराव मन को देकर
कुछ नमकीन आंसू और मीठी मुस्कान भरकर
कुछ फीके रिश्ते भुलाकर और नये रिश्ते संजोकर
कुछ शिकवे-गिले मिटाकर और उमंग दिल में भरकर
फिर नयें साल में जीवन एक नये फूल सा खिलता है।