शहर हृदय का

शहर हृदय का अब
विराना हो चुका है
जो कभी तुम्हारी स्मृतियों से
गुलजार हुआ करता था
देखो आज
तुम्हारे स्मृतियों से
पपड़ियां निकल रही
हृदय को
खंडहर का रूप दे रही
इसी शहर में कभी
फूल खिलते थे
तुम्हारी चाहत के
मेघ भी प्रेम की
बूंदें लिए घुमड़ पड़ते थे
भौरा कोई मन का
चंचल हो उठता था
तुम्हारी खुश्बू से
ये शहर का आलम
महक उठता था
पर अब सबकुछ
बदल गया है
क्योंकि इस
शहर पर
किसी और का
हक हो गया है।


तारीख: 03.03.2024                                    वंदना अग्रवाल निराली




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