शीशा

चंद लम्हे याद हैं , चाँद लम्हों की थी वो ख़ुशी  I
चाँद - सा चेहरा था जिसका , चांदनी सी थी हंसी II

वक्त के भयानक बादलों ने था ,उसको छिपा लिया I
खोया था मैंने जिसे उसे , बादलों ने था पा लिया II

उन बादलों का रंग काला हुआ उस दर्द से I
बादलों पर था न असर , पाला पड़ा बेदर्द से II

उन बादलों  से जो बूँदें निकलती नीर की I
वो बूँद कहती हैं , कहानी किसी के पीर की II 

उस बूँद के सामने सिन्धु भी उथला हुआ I
वो बूँद थी कोई प्यार की, या था  शीशा कोई पिघला हुआ II


तारीख: 03.03.2024                                    रंजीत कुमार त्रिपाठी









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