सूखी हुई कलियां फिर से कभी खिला नहीं करती-ग़ज़ल

सूखी हुई कलियां फिर से कभी खिला नहीं करती
ये जिंदगी दोबारा किसी को मिला नहीं करती

मुहब्बत करने वाले दिल कुछ ख़ास हुआ करते हैं
हरेक दिल में आतिश-ए-इश़्क जला नहीं करती

चाहे शूली पे चढ़ा दो सच बोलने वाले सच ही बोलेंगे
सदाक़त की जुबान आसानी से सिला नहीं करती

खुद्दारी को खुद अपने ही पैरों पर चलना पड़ता है
बैशाखियों के सहारे अना कभी चला नहीं करती

हौसलों के कदम मुसीबतों में भी डगमगाया नहीं करते
पर्वतों की बुनियादें ज़लज़लों से हिला नहीं करती

जो हुकूमत अपनी अवाम की सुध-बुध नहीं लेती
वो हुकूमत जियादा दिन तक चला नहीं करती

ये दुनियां ख़ुदग़र्ज़ है यकीनन इसे तुमसे कोई ग़रज़ है
बगैर मतलब के तो ये किसी का भी भला नहीं करती

सबकी सब मुरादें मुकम्मल हों ये मुमकिन नहीं है
मुंह मांगी तो मौत भी किसी को मिला नहीं करती

मुहब्बत की एक खुसूसियत ये भी है 'नामचीन'
कि ये नफरतों से भी कभी कोई गिला नहीं करती
 


तारीख: 18.04.2024                                    धर्वेन्द्र सिंह









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