रवि की प्रेमिका

चिड़ियों का कलरव,
पानी की बौछारें,
नीले अम्बर की चादर लपेटे
सूरज कमरे से बाहर आया,
पंछियों का गमन,
जाने किस दिशा में,
बादलों से होकर जाती,
रौशनी दिखाई दे रही।
एक चेहरा नज़र में,
दूर क्षितिज से भी आगे,
आँखें खूबसूरत,
सुनहरे बाल,
गर्दन सुराही,
कोमल गोल गाल,
होंठों में नशा,
उम्र का अंदाजा नहीं,
कहीं न कहीं गरिमामय,
क्या ये रवि है,
जो अम्बर रुपी नीली चादर लपेटे,
अपनी किरणों की मुस्कान बिखेरे,
बादलों का जमघट लगाकर,
पंछियों को पास बुलाकर,

बिन कुछ बोले,
आँखों में तेज लेकर,
जिंदादिली की मिसाल बनकर,
किसी की परवाह किए बिना,
हर रोज एक ही समय,
समय के बंधन से परे,
चाँद को अलविदा कहते,
हर मौसम में एक सा,
अपनी किसी प्रेमिका को, हर रोज
बिलकुल एक ही अंदाज में,
ढूँढने का प्रयास करता है।

वो प्रेमिका, जो कहीं छिपी हुई है
पर कहाँ?
पहाड़ों में कहीं छिपी हो शायद,
या नदियों में सरगम की तरह,
जंगल में हो सकती है कहीं पेड़ पर,
या सागर की गहराइयों में,
किसी शहर में हो सकती है,
या फिर सुदूर गाँव में,
पीपल की छाँव में,
कच्ची सड़कों में कहीं,
बाजरे के खेतों में,

खेतों की मेढ़ों में,
चाय की टपरी पर,
फलों के ठेले में,
आम के बगीचे में,
तालाब के किनारे,
या किसी किसान के घर पर,
हाँ गाँव में ही कहीं होगी।
पर शहर में भी हो सकती है
हजारों लोगों के बीच,
किसी बिल्डिंग के फ्लैट में,
किसी सिनेमाघर में,
किसी बड़े दफ्तर में कहीं,
या छोटे से मकान में
जिसमे सिर्फ एक छोटा सा कमरा है,
सब्जी मंडी में,
बड़े से मॉल में,
कहीं भी हो सकती है,
या शायद कहीं भी नहीं,
हो सकता है
कि वो किसी कवि की कल्पना में,
अँगड़ाई ले रही हो,
और बहोत जल्द अपने रवि से,
रूबरू होने वाली हो।


तारीख: 18.10.2017                                    विवेक सोनी









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