कर दिया है बंद एक बक्से में
अधूरे ख़तो को
छोटी ख्याइशों को
टूटे सपनो को
कुछ रूढी यांदों को
अब खड़ी हूँ मैं अकेली........
देखो प्राची से सूरज निकल रहा है
कैसे मेरे दामन मे अपनी करो से
डाल रहा खुशियां
ये पहाड़ कर रहे है मुझे इशारा
अटल रहने का
ये विहंग गा रहे है मेरी नयी कविता
इठला कर नीचे ताल दे रही है सरिता
मेरे मुख पर शबनम की बूंदे कर रही है श्रगार
पुष्प दे रहे है मेरे होंठो को रक्तिम लालिमा
मेरे मन को विस्तार देती ये आकाश की नीलिमा
मैं प्रकृति के झूले मे मैं बैठी धानी चुनरीया ओढे
हरयाली की मेहंदी रचाये कर रही हूँ तुम्हारा स्वागत
ये पत्तो की सरसराहट है
या नववर्ष की पदचाप ध्वनि
जो मुझे अनसुने ही सुनाई दे रही है
देखो आ गया हूँ मैं
क्या हुआ अगर थोडी मुश्किल आ जाये
रास्ता थोडा पथरीला हो जाए
उठो
चलो
देखो
वो आने वाला कल तुम्हे पुकार रहा है
ठान लो कुछ मन मे
क्या पता वो कल तुम्हारा ही हो
करो स्वागत ऐसे नववर्ष का