यह पाठ सीखा मैने कक्षा 4 में है
उपाधि प्राप्त मुझे अनेकों आज
नगरवासी जाने मुझे आदर्श व्यक्तित्व भाव से है
किन्तु गम्भीर आज ,कुछ विचलत सी हूँ
किन्तु...... गम्भीर आज ,कुछ विचलित सी हूँ
निशा स्वप्न में जब खींचे मुझे
कुछ असन्तुष्ट सी हर परिणाम से हूँ
क्या वाकई आज तमस से परे ,
मैं ज्योति की राह पे हूँ?
या मात्र किसी निराधार विद्या की उपासक
मैं आज भी कहाँ पार्थ के समान सी हूँ? {पार्थ =महाभारत के अर्जुन}
यदि स्वयम् हूँ उज्ज्वल तो
क्यों ना मैं आज किसी की मददगार सी हूँ
है दर्पण आज बरदार मेरे
कई सवालों ने जकड़ा मुझे (2)
ये सवाल, दर्पण, और उपाधिया
कुछ एकांत में गुफ्तगू सी करती हैं
ये सवाल ,दर्पण और उपाधिया
कुछ एकांत में गुफ्तगू सी करती हैं
क्या आज मैं मुक्कमल किसी अजनबी के उजियार में हूँ????