उम्र भर ये खामोशियां रहीं शब्द होठों पर आते आते थम से जाते थे अब ये उम्रदराज होने लगी है तो खामोशियां दरवाज़े खोलने लगी हैं कब तक चुप रहती पत्थरों पर भी वार करो तो नमी निकलने लगती है हल्के हल्के से आसूँ जैसा कुछ बहने लगता है।
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