मजबूरियाँ मेरी

मजबूरियाँ मेरी आजकल मुझे चिढ़ा रहीं हैं
मायूसी अपनी कामयाबी पे मुस्कुरा रही हैं ।
अश्क़ आँखों में आने से भी लगे है मुकरने
ख्वाहिशें खामोशी से खुदकुशी किये जा रही है ।
मौत हो गयी है मेरे खिलाफ़ रूठ कर मुझसे
ज़िंदगी रोज़ नये हादसों से दिल बहला रही हैं ।


तारीख: 11.02.2024                                    अजय प्रसाद









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