8 साल, 8 खत और 1 प्यार

अपने कमरे की खिड़की पे खड़ा अभिषेक, सड़क पर निचे देख रहा था। जैसे ही उसकी नजर सड़क से गुजरते एक लड़के-लड़की पर पड़ी, वैसे ही कुछ पुरानी यादें अचानक ताज़ा हो गयीं। यादों का जहाज, उड़ाकर सीधा ले गया उसे, ८ साल पीछे उसके गृह-नगर की माल-रोड पर। जहाँ शाम के समय, वो और पूजा रोज टहलने जाया करते थे। ये टहलने से सिलसिला लगभग पिछले डेढ़ साल से चल रहा था। और उतने ही समय से चल रहा था उनके प्यार का सिलसिला भी। वो प्यार जिसका शायद उन दोनों को भी मालूम न था। रोज यूँ ही साथ टहलना, साथ घूमना, साथ कॉलेज जाना, साथ लंच करना, साथ कॉलेज से घर आना, दोनों की आम दिनचर्या थी। रोज यूं ही साथ टहलना, साथ घूमना, साथ कॉलेज जाना, साथ लंच करना, साथ कॉलेज से घर आना, दोनों की आम दिनचर्या थी। 

कॉलेज के आखिरी दिन चल रहे थे। पूजा की नौकरी भी लग गयी थी अहमदाबाद में। उधर अभिषेक भी सिविल सर्विसेज की पढ़ाई करने के लिए दिल्ली जाने का मन बना रहा था।जैसे-जैसे कॉलेज का आखिरी दिन करीब आ रहा था, पूजा का मन अब डामाडोल होने लगा था। उसे अपने करियर से ज्यादा फिक्र, अभिषेक के साथ रहने की होने लगी थी। एक दिन जब वे अपनी फेवरेट कॉफी शॉप में कॉफी पी रहे थे, तब अचानक से पूजा बोल पड़ी "अभिषेक ,पता नही क्यों मेरा मन नही हो रहा अहमदाबाद जाने का" । 

"क्यों " अभिषेक छूटते से बोला। 

"मुझे नही जाना अहमदाबाद, मुझे यहीं रहना है तुम्हारे साथ।" पूजा बोली। 

"पागल हो गयी हो क्या? इतनी अच्छी कंपनी है। इतनी अच्छी जॉब है। तुम्हे प्रोफाइल भी अपनी पसंद की मिली है। कोई छोड़ता है क्या इतना अच्छा मौका। पागल मत बनो और चुपचाप जाने की तैयारी शुरू कर दो। " अभिषेक ने समझाते हुए कहा। 

पूजा कुछ नहीं बोली, बस अपने कॉफी कप की तरफ देखती रही। उस रात दोनों को नींद नहीं आई। अभिषेक ये सोचता रहा कि कहीं वो गलती तो नही कर रहा। कहीं वो भी यहीं रुकना नहीं चाहता पूजा के साथ। अगले दिन सुबह , पूजा का फ़ोन आया और बोली की "मुझे लगता है तुम सही कह रहे थे अभिषेक। मुझे इतना अच्छा मौका नहीं छोड़ना चाहिए। मेने डिसाइड कर लिया है मैं जा रही हूँ अहमदाबाद। " ये सुन कर अभिषेक की आँख में एक आंसू छलक आया और बोला "गुड डिसिशन पूजा।"

"अभिषेक अभिषेक, कहाँ खोये हुए हो। " पीछे से आवाज़ आई। यादों का जहाज वापिस अभिषेक को अपने कमरे में ले आया था। 

"जल्दी चलो संडे शाम को सुपर मार्किट में भीड़ हो जाती है। " दरवाजे पर खड़ी हुई अनु बोली।

"हाँ चलो , आज ड्राइव तुम करना। गाडी निकालो ,मैं आता हूँ। चाबी उधर ड्रावर में रखी है। " अभिषेक ने उत्तर दिया। 

अनु के जाते ही, अभिषेक ने बर्थडे कार्ड और उसमे रखा हुआ छोटा सा नोट बाकी कार्ड्स के साथ कपबोर्ड में रख दिया। 

पिछले ८ साल से पूजा अभिषेक के बर्थडे पर एक कार्ड और एक छोटा खत भेजती है। जिसमे लिखा होता है "हमेशा खुश रहो, मुस्कुराते रहो। तुम्हारी पूजा। " दुनिया की जद्दो-जेहद में खोया हुआ प्यार, आज बर्थडे कार्ड्स के सहारे ज़िंदा है। और शायद हमेशा रहेगा भी।               


तारीख: 10.06.2017                                    अर्पित गुप्ता 




रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है