रत-मिलन

सितारे सिमट आए थे, दमके वफा के दामन में,
शब्ब-ए-शमा अल्फ़ाज़ थे, बरसे वफा के आँगन में ।

इक झिलमिलाती रात में, थी इक हसीं कायनात ये,
भर लें उन्हें इन बाहों में, हाय! कैसे थे जज़्बात वे!
इन शबनमी दो आँखों में, शर्मो-हया की रौनकें,
अब ये रहें या हम रहें?, थे बस यही खयालात ये ।।

फिर चाँद की चेहरायियों से, रज-ए-रात झरने लगी,
मद-होश हवा उस सेज पर, सैलाब तब भरने लगी ।
उस रात का कुछ सोचकर, झुकने लगी उसकी नज़र,
नजरें मेरी दिलदार से, कुछ बात तब करने लगीं ।। 

लब कसें फिर लब सुनें, कुछ तुम कहो कुछ हम कहें,
दिल से दफा हों धड़कनें, अब तुम रहो और हम रहें ।
गहराईयों में साँसों की, बिस्मिल खुदा बसता रहे,
बनकर लहर इस प्यार की, कुछ तुम बहो कुछ हम बहें ।।

खामोशियों का ये सबब, अब और सहा जाता नहीं,
तुम्हें देखकर यूं सामने, अब और रहा जाता नहीं ।
कर दें कोई शुरुआत पर, न दे कोई इल्जाम गर,
मदहोशियों का ये ग़ज़ब, इतना ढहा जाता नहीं ।।

दिलदार लब खिल जाने दे, कुछ इनको यूं सिल जाने दे,
महसूस हो धड़कन तेरी, मेरे दिल में तेरा दिल जाने दे ।
आँखों में तेरी परछाई हो, गालों पे तेरे लालाई हो,
साँसों में तेरी खुशबू हो, तुझे सांस में यूं मिल जाने दे ।।

जन्नत-ए-बदन की शोखियाँ, चन्न-यार पे तू निसार दे,
हसरत-ए-कसक मिट जाएगी, इतना मुझे तू प्यार दे ।
वो चाँद भी ललचाएगा, तेरा देख के कमसिन बदन,
न कर शरम इस यार की, हर वार पे तू सब वार दे ।।

फिर यार ने मेरे सनम, जब होंठो से लब थाम लिया,
आँखों में नशा भर आया था, फिर साँसों ने अब काम किया । 
उस रात की दीवानगी, इन आहों में बढ़ने लगी,
शैतानियाँ भरमार थीं, जब प्यार सनम उन्हें नाम दिया ।। 

रात भर रत-जाग कर, रस पान जब हमने किया,
प्यासे दिलों के बाग को, जल-दान तब हमने दिया ।
मेरी बाहों के उस घेर में, वो रात भर लिपटी रही,
बरसे बदर उस रात में, यह जान अब हमने लिया ।।


तारीख: 09.06.2017                                    एस. कमलवंशी




रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है