न फूलों से वफ़ा मिली, न काँटों ने दगा दिया
गुलशन से गुल बागी हो गए, और कलियों ने रुला दिया।
न कोयल ने कूक सुनाई
न मौसम ने ली अंगड़ाई
ना ही शाखें लहराई
ना बेलों ने कमर हिलाई
किसने कली का यौवन छीना और भंवरों को ख़फा किया।
न तितली ने पर फैलाए
न छाई घनघोर घटाएं
न बचपन इनके पीछे भागा
सावन था या था सन्नाटा
ये कैसा सावन था यारों जिसने उपवन जला दिया।
मोती जैसी ओस कहाँ है
और कहाँ बारिश की बूंदें
कहाँ गया अलसाया मौसम
कहाँ खो गए कीट पतंगें
इंद्रधनुष अब दिखा नहीं जाने किसने छिपा दिया।