फिसलकर गिरना गिरकर संभलना ये तकदीर हमारी है-ग़ज़ल

फिसलकर गिरना गिरकर संभलना ये तकदीर हमारी है
मगर हमने हिम्मत नहीं हारी है जंग तकदीर से अभी जारी है

विरासत में नहीं मिली हमें ये जो ग़ज़ल की फ़नकारी है
हमने खुद अपने हाथों से अपनी तकदीर संवारी है

मैं यही समझता रहा दुनियां को कोई बहुत बड़ी बीमारी है
अब पता चला मेरी तरह दुनियां भी मुहब्बत की मारी है

ग़र पड़ें यहां मरासिम बढ़ाना तो कभी गफ़लत में न बढ़ाना
हाथ किसी की ओर सोच-समझकर बढ़ाना ये दुनियादारी है

वक़्त शय बहुत बड़ी है कीमत वक़्त की तुम पहचान लो 
ये बात हमारी मान लो फ़क़त इसी बात में समझदारी है

है आसमां में चांद उकरा और इर्द-गिर्द लाखों सितारे हैं
वाह क्या नजारे हैं ये किस तसवयरसाज़ की कलाकारी है

हम सब तो कठपुतलियां हैं उसके इशारों पर नाचने वाली
जिंदगी इक तमाशा है ऊपर वाला इस खेल का मदारी है

जितना तुम समझते हो उतना आसां नहीं नशेमन बसाना
'नामचीन' लगता है शायद किसी ने अक्ल तुम्हारी मारी है


तारीख: 18.04.2024                                    धर्वेन्द्र सिंह




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