एक कवि की सलाह 

 

इमारत नहीं
पत्थर नहीं
तुम धूल बनना
तुम वृक्ष बनना
उड़ना हवाओं के साथ
झूमना फि़जा़ओं में संगीत बनकर

मृत्यु नहीं
बेहोशी नहीं
तुम प्रेम बनना
बनना जीवन
निचोड़ के दिल को छींटे अस्तित्व में बाँट देना
अपनी साँस की हलचल से पूरी सृष्टि पाट देना

तुम न बनना दलदल
हत्यारी ईर्ष्या का, बेकारी घृणा का
दलदल जो डुबोता है, दलदल जो मदमाता है
तुम नदी बनना, तुम गंगा होना
जिसमें डूबकर लोग तरते हैं
जिसको छूने से पाप मरते हैं
जिसके वेग से सागर भरते है

बड़े-बड़े स्तंभ न बनना
ऊँचे खूनी स्वप्न न बनना
तुम बरगद की छाँव बनना,
तुम माँ का गाँव बनना
तुम पहाड़ों से टपकती पानी की बूँदे बनना
तुम बच्चों का ख़ाब बनना

मेरे दोस्त मत बनना वह सब
जो दुनिया कहे
जो प्रसिद्धि की चाल में हो
दौलत के ख्याल में हो
स्पर्धा के उछाल में हो
ताकत के सवाल में हो

तुम अपने दिल को अपनी मासूम बेटी समझना
उसकी उँगली पकड़के उसे दुनिया दिखाना
उसे कराना दर्शन रचयिता के खेल के
और छोड़ देना उसे हवाओं के भरोसे
जैसे छोड़ रखा है किसी ने इस धरती को

तुम सही ही करोगे
तुम सहारा बनोगे
तुम नशे में रहोगे
मैं वचन देता हूँ।


तारीख: 15.04.2020                                    पुष्पेंद्र पाठक









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