मैं नहीं चाहता,
की दो मुझे नाम,
पता,
सर्टिफिकेट...
मैं नहीं चाहता,
भीड़ में रहना,
वो करना, जो
सही है,
मैं नहीं चाहता...
मैं चाहता हूँ होना,
जैसे ये पहाड़ होते हैं,
होना जैसे होती है बारिश,
होना जैसे होते हैं तरेगन,
तारों से कौन माँगता क्वालिफिकेशन ?
भूकंप से कौन माँगता पहचान पत्र...?
जलता हूँ मैं इस मौन साधुओं से,
ये डरते नहीं आलोचना से,
करते वो जो मन है कहता,
ना की वो जो दिलाये सम्मान
जगत में...
मैं जलता हूँ इन सबसे
और बनना चाहता हूँ इनसा,
कुछ ऐसा
जो हो,
तो हो,
खुद ही खुद के लिए.
जो,
जब हो,
तब हो वो
... और नहीं कुछ.