मैं कलयुग की सीता हु, मुझे राम नही चाहिये।
मैं कैकेयी का दिया वनवास तुम्हारे साथ काट लूंगी,
तुम्हारे पीछे तो नही पर साथ जरूर चल दूंगी,
तुम अपना सुख त्यागोगे तो यकीन मानो मैं भी सुख नही भोगूँगी,
बस ये उम्मीद न रखना के तुम महल में रहोगे और मैं वन की हो जाउंगी।
हां मैं सतयुग की सीता नही हु, मुझे राम नही चाहिए।
अगर कभी कोई रावण मुझे ले गया तो यकीन रखना, मैं उसकी कभी नही हो पाऊंगी
लेकिन अगर उस युग की तरह पहला प्रहार तुम्हारी तरफ से हुआ, तो रावण को पूरी तरह गलत भी नही ठहराउंगी,
तभी तो कहती हूं कि मैं वाल्मीकि की सीता नही, मुझे राम नही चाहिए।
मुझे उम्मीद है कि तुम मुझे हर कष्ट से बचा लोगे,
रावण को मार न भी सको तो मुझे छुड़ा लोगे,
पर अगर अग्नि परीक्षा लेनी हो तो मुझे मत बचाना,
क्योंकि तुम्हारे साथ वनवास तो काट लूंगी, पर तुम्हारा दिया वनवास नही काटूंगी।
हां मैं अब वो सीता नही हु, मुझे राम नही चाहियें ।।