स्वार्थ चपलता धोखे का गर आता है स्वप्न ,
सुधर जा नहि आएगी रिश्तों से दुर्गन्ध ....
मन से मन गर ना मिले, ना जीवन-आनंद ,
पर कठिन दौर में साथ की ना टूटे सौगन्ध ....
रिश्तों के यदि पेड़ में लपट जाए सारंग ,
मन से तब रहना सदा सुंदर शीतल श्रीखण्ड ....
जहरीले अँधियारे जब करते हरदम तंग ,
तुम 'शशांक' उजियारा लाकर करते रहना जंग ....
प्रेम भाव से गर चले जीवन होगा धन्य ,
लड़कर भिड़कर तो सदा बिगड़ेंगें सम्बन्ध ....
शब्दार्थ = सारंग -साँप , श्रीखण्ड -चंदन