Breathe: अमेज़न टीवी सीरीज की समीक्षा

Breathe Hindi Review

इंसान अपने जीवन मे जिन दो चीजों के डर से कभी नही निकल पाता वो होता है आने वाला कल और बीता हुआ कल। जहां आने वाला कल इंसान को हमेशा कुछ खोने के डर से धमकाता है वहीँ बीता हुआ कल खोई हुई चीजों से वास्तविकता को मार देता है। चीजों के पाने और खोने में सबसे ऊपर जो डर होता है वो है किसी अपने के खोने का डर। इसी डर के इर्द गिर्द घूमती है “BREATHE"।

कहानी है पुलिस इंस्पेक्टर कबीर (अमित साध), जो एक हादसे में अपनी बेटी को खो चूका है, और फुटबॉल कोच डैनी (आर माधवन) जो अपने छह साल के बीमार बेटे को घर में बंद और नाक में लगी हुई पाइप में जकड़ा देखने को मजबूर है। जहां कबीर अपनी बीते हुए वक़्त में दबकर अपना आज बिगाड़ चुका है वंही दूसरी तरफ डैनी अपने आने वाले कल से मजबूर होकर अपनी पिछली छवि को कुचल रहा है। यंहा अमित साध का नाम मैंने पहले इसलिए लिया है क्युकी वो जितनी देर भी आपकी कंप्यूटर स्क्रीन पर रहते हैं अपने एक एक अंग से अभिनय की मेहनत टपकाते हैं, वो कांपते हुए बाएं हाथ और दाहिने हाथ से दारू पीना हो या फिर मजबूर आँखों के साथ क्रूरता दिखानी हो।

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सीरीज के शुरुआती कुछ एपीसोड व्यक्तिगत रूप से गहराई नही रखते और नाही इतनी उत्सुकता पैदा कर पाते हैं कि आप किसी अंग्रेज़ी सीजन की तरह पूरी रात में एक बार इसे देखने की चाहत रखे, खैर ये बात भी सच है कि अमेज़न द्वारा भारतीय भाषा जगत में लायी गयी इस क्रांति को किसी अंग्रेज़ी सीजन से तुलना करना बेमानी होगी। अगर आप इस सीजन के प्रयोग की मेहनत को करीब से देखना चाहते हैं तो आपको पहले कुछ एपिसोड सयंम और सब्र से देखना होगा। क्योंकि शुरुआत में आपको सब कुछ साधारण सा लगेगा, माधवन का अभिनय हो या फिर कहानी की गति। लेकिन, जब कहानी परिपक्व होगी, तब ये आपको जकड़ लेगी और इस तरह से जकड़ेगी की आपकी वास्तविकता को झकझोर देगी।

चंद एपिसोड के बाद एक पल ऐसा आएगा जब आपको ये महसूस होगा कि आपने शुरुआत के एपिसोड को देखकर कोई वक़्त नही बर्बाद किया है, क्योंकि कहानी का हर एक पहलू आने वाले पहलुओं को जोड़ता है और बीती हुई कहानी का हर चीज़ आने वाली कहानी में अपना एक वाज़िब मतलब रखता है, ख़ास कर डैनी की प्लानिंग्स, जो शुरू में बिलकुल ही साधारण लगती है और आगे चल कर आपके सोच को भी पार कर जाती है (यूरेका वाली भी फीलिंग आएगी)। लेकिन शायद सच्चाई भी यही है की एक आम इंसान शुरुआत में किसी भी चीज़ में साधारण ही होता है अनुभव के साथ ही उसमे सटीक होता है, और यही सच्चाई ही BREATHE को अलग बनाती है।

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अभिनय की बात करें तो कहानी मुख्यतः रूप से जिन दो किरदारों के आस पास घूमती है उन्होंने अपने किरदारों के साथ पूरी तरह से न्याय किया है। एक तरफ इंस्पेक्टर कबीर की भूमिका में अमित साध शुरुआत में अपने अभिनय से पूरी तरह प्रभावित करते हैं तो वंही दूसरी तरह डैनी की भूमिका में आर माधवन जहां शुरू में कमजोर नजर आतें हैं तो आखिरी के एपिसोड में बिल्कुल छा जातें हैं। जिस तरह एपिसोड दर एपिसोड सीरीज की कहानी परिपक्व हुई है उसी तरह इसके किरदार भी आगे बढ़कर आपके जहन में अपनी जगह बना लेते हैं। कुछेक सीन में अमित साध ने काफी प्रभावित किया है, लेकिन माधवन के चेहरे की हर एपिसोड के साथ बदलती हुई रेखाओं में वो कहीं खो जातें हैं। इसका शायद दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि जहां डैनी हर एपिसोड में क्रूर और चालाक होता चला जाता है वंही कबीर एक पल के बाद खुद को संभालने की कोशिश करने में किरदार के तौर पर और कमजोर होता चला जाता है।

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इसे क्यों देखा जाए?:-

  • देखा इसलिए जाए क्यूंकि हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओ के क्षेत्र में यह प्रयोग की जबरदस्त शुरुआत है और खासकर यह हमारे समाज के उस पक्ष के लिए है जिन्हे मसाला पसंद नहीं है, आसान शब्दों में "समझदार वर्ग" के लिये।
  • देखा इसलिए जाए क्यूंकि यह काल्पनिक कहानी हमारे वास्तविकता में कहीं न कहीं घटित हो चुकी है, हो रही है या होगी, और हम इससे अनजान है या शायद जान बुझ कर भी आँखे मूंदे हुए हैं।
  • अपने व्यस्त वीकेंड्स में से लगभग 150 मिनट का समय निकालिये और इसकी प्रयोगात्मक शैली की जांच कीजिये। अंग्रेजी में "Worth Watch"।

-आवारा कुत्ता (समझदार)

 


तारीख: 24.02.2018                                    अंकित मिश्रा




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