मैं 'बीथोवन'
लगता हूँ क्या तुम्हे?
उसके अप्रत्यक्ष रहने पर,
एक सवाल में लिपटा उलाहना था चाँद का,
अपनी प्रेमिका को।
मगर मुझे लगता है,
उसे ये उलाहना नहीं करना था,
रहना था उलझते, प्रेम की सुंदर भावनाओं में,
अप्रतिम कालजयी रचनाओं की
असंख्य,संभावनाओं में।
उस दिन प्रेयसी ने
बहती चांदनी के ऊपर, प्रहरों के पुल पर,
रोज की तरह, इंतजार में चले आते चाँद से,
दो कदम आगे जा कर,मुड़ कर
आखिरी सलाम किया और कहा
"मैं ..बियाट्रिस!"
उस रात से
चाँद "दांते" हुआ
भटकता है।