अहद-ए-वफ़ा

मैं देखता था की वो मुझे छुप के देखती थी
मैं जानता था की वो मुझे दिल में चाहती थी

जन्मों का साथ अपना, कहती थी आँखे उसकी
नकाब-ए-वफ़ा को मेरे, वो जुल्म समझती थी

मैं कह दूँ कैसे उससे मेरा प्यार है किसी का
मैं भागता था उससे, इक डोर खींचती थी

उसे प्यार हो गया था पत्थर के देवता से
चश्मों में भर के पानी, लिहाफ़ सींचती थी

तकरीरे खड़ी थी मेरी, खिलाफत में आज सारी
अहद-ए-वफ़ा की बातें बड़ी बेशकीमती थी


तारीख: 19.06.2017                                    आयुष राय






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