ऐसा नही कि तुमसे मुहब्बत नहीं रही ।
लेकिन हाँ अब कोई भी शिकायत नहीं रही ।।
('हुस्ने-मतला')
के अब किसी भी लहज़े में गैरत नहीं रही ।
दुश्मन बहुत हैं पर वो अदावत नहीं रही ।।
आदत में, ख्वाहिशों में ,तुम्हीं रहते हो मेरे ,
कैसे कहूँ कि तुमसे मुहब्बत नहीं रही ।।
आँखों में ख्वाबों में यूँ बसे हो मेरे कि अब
तस्वीर की तो कोई जरूरत नहीं रही ।।
हम हसरतों के पीछे ही यूँ मर मिटे मग़र ,
क्या बात है कि अब कोई हसरत नहीं रही ।।
तन्हाई हो कि इश्क हो या फिर हो बन्दगी,
अब आज तो कहीं भी नज़ाफ़त नहीं रही ।।
तेरे फ़िराक़ में यूँ रहे तन्हा हम कि अब ,
आदत ने कह दिया तेरी आदत नहीं रही ।।
दिल होता ख्वाब होते तो कुछ होता मुझमें भी ,
वो हाल है कि अब कोई हालत नहीं रही ।।
ऐ 'देव' अब कहाँ पे रहोगे कि अब तो ये ,
दिल कह रहा कि तेरी जरूरत नहीं रही ।।