देखो दिवस मख़मूर हैं। जैसे गमों से चूर हैं।।
जिसका कठिन मिलना लगे- खट्टे बहुत अंगूर हैं।
संघर्ष जिनने है किया - परिवार के वे नूर हैं।
मैं कुछ नहीं समझा जिसे- वो वाकई मशहूर हैं।
क्या खाक हम आशा करें- खुद ही बहुत मजबूर हैं।
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