थके कारीगरों की मेहनत का कोई मोल नहीं है
घर बैठे दौलतमंदों का खाना खराब है
ये हालात देख चश्म-ए-नम मुझसे पूछ रही है
ये कैसी कुदरत है ये क्या हिसाब है
आगे बढ़ के आयें जिन जिन में ताब है
मुल्क मांगती इक नया इन्क़लाब है
कर दिया है हुक्मरानों ने आवाम को तगाफ़ुल
उनका गर रुतबा है तो अपना भी रुआब है
ठहर गए आज तो लग जाएगा नमक तुम्हें भी
चलते दरिया का पानी हर नफ़स शादाब है
आजकल आज की ज़्यादा सोचा करें "बरेल्वी"
माज़ी अहम है तो मुस्तक़्बिल भी असबाब है