हमारी शोहरतें उन्हें अब रास नही
कल तक साथ थे मेरे अब पास नहीं
उनने मुहरबाज़ो से दिल्लगी कर ली है
लकड़ी के ताजमहलों की अरदास नहीं
वो देखते ही देखते कइयों के दोस्त हो गए
उनकी वफाफ़रोशी की भी हमें आस नही
दुआओं में भी कोई याद किया करता था
तआरुफ़ अब भी है दिल में एहसास नहीं
चाहत था मेरी औ मुकम्मल है अब भी
मेरे इश्क़-ए-जुनूं को किसी और की तलाश नहीं