कितनी मुद्दत हुई कि इधर, आप का दीदार नहीं हुआ,
नज़रे नहीं मिली, अपनी और कुछ, इज़हार नहीं हुआ ,
सुना था कि इसी जज्बे को, कहते है पैगामे मोहब्बत,
उम्मीद है मुझे कि अपना हर्फ़ यह यूँ बेकार नहीं हुआ,
यह सच है कि वक़्त पे नहीं पंहुच पाया था मैं उस रोज़,
पर तुमसे भी तो मेहरबान कुछ और इंतज़ार नहीं हुआ,
यूँ वो चंद फूल और इक तेरा खत मुझे दे गया क़ासिद,
जिनकी वजह से मैं अब तक, खुद पे शर्मसार नहीं हुआ,
कोई वायदा नहीं किया था, यह अब क्या कहते हो तुम,
फिर क्यों आये इतने करीब क्या कुछ इकरार नहीं हुआ,
अगर कुछ भी शुबहा था तुम्हे बेपनाह मोहब्बत पे मेरी,
क्यों यूँ दिल में बस गए मेरे और तुमसे इंकार नहीं हुआ,
अब भी अगर तम्मना है कि अलग हो जाएँ अपने रास्ते
जी ही लूंगा किसी तरह मैं,तेरी इबादत में बेज़ार नहीं हुआ!!