जुबां पे सत्ता का जब पहरा हो जाता है

Gazal shayari

जुबां पे सत्ता का जब पहरा हो जाता है
हर आदमी गूंगा और बहरा हो जाता है

उम्र भर टिमटिमाते हैं मगर बाद मरने के
जुगनुओं की लाश पे अंधेरा हो जाता है

नदी के मिलने से कभी उथला नही होता
पहले से समुंदर और गहरा हो जाता है

तख्तियों पर लकीरें खींचोगे तो पाओगे
मासूम सा प्यारा एक चेहरा हो जाता है

जहाँ आबादियां खत्म हो जायें ऐ दोस्त
वहाँ बेताब रूहों का बसेरा हो जाता है

विरान घरों को क्या घर कहोगे "आलम"
जहाँ इंसान नही वहां सहरा हो जाता है


तारीख: 27.01.2024                                    मारूफ आलम




रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है