किस दरम्याँ हूँ कर दुआ पूछता हूँ 

किस दरम्याँ हूँ कर दुआ पूछता हूँ 
मैं अपना पता ही खुद ढूंढता हूँ 

लफ्ज से जाये रहे ना नब्ज़ में 
शोंक हर मिटाने की, दवा ढूंढता हूँ

बहे जो आँख से दूर दूर बिखर के 
हर उस अश्क की आरज़ू ढूंढता हूँ 

वाह था ख्वाब खुद मिलने आये 
फ़िज़ूल इस शरारत की, वजह ढूंढता हूँ 


तारीख: 16.06.2017                                    रवि कान्त मोंगा 




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